जब अमरचन्द बाठिया ने गोसेवा को समर्पित 700 भारतीय सैनिकों की हत्या का बदला, रानी लक्ष्मीबाई की मदद करके लिया.
वेदामृता🕉️
जब अमरचन्द बाठिया ने गोसेवा को समर्पित 700 भारतीय सैनिकों की हत्या का बदला, रानी लक्ष्मीबाई की मदद करके लिया…
अमरचन्द बाठिया का जन्म राजस्थान की बीकानेर में हुआ था । व्यावसायिक कारणों की वजह से उनके परिवार को राजस्थान से निकलकर ग्वालियर आने के लिए मजबूर होना पड़ा। ग्वालियर में आने के बाद वहां के सर्राफा बाजार में उन्होंने शरण ली ।
उन दिनों 1857 का संग्राम पूरे देश में फैल रहा था, अनेकों साधु- सन्यासी आजादी की लड़ाई के बारे में लोगों को बताते थे तथा अपनी भारत माता के लिए समर्पित होने के लिए प्रेरित करते थे।
एक दिन एक सन्यासी ने अमरचंद बांठिया को बताया कि अंग्रेजों ने 700 देसी सैनिकों की एक पूरी टुकड़ी को सिर्फ इसीलिए गोलियों से भून दिया था क्योंकि उन्होंने गायों को मारने और बैल की पीठ पर चढ़कर सवारी करने से मना कर दिया था यह सुनकर भाटिया स्तब्ध रह गए और उसी क्षण अंग्रेजो के खिलाफ लड़ रहे क्रांतिकारियों की मदद करने का फैसला ले लिया, उस समय झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अपनी सेनानायक राव साहब और तात्या टोपे के साथ अंग्रेजों से लड़ रही थी , लेकिन उनके सैनिकों को कई महीनों से वेतन ना मिलने के कारण से वो सब तथा उनका परिवार बड़ी आर्थिक त्रासदी झेल रहे थे
राशन की भारी कमी हो गई थी सैनिक हतोत्साहित हो गए थे।
इन सभी विपरीत परिस्थितियों के कारण रानी पूरी सेना के साथ वापिस गवालियर की तरफ लौटे, लौटने के पश्चात रानी लक्ष्मीबाई जी ने बांठिया से मुलाकात की तथा उन्हें युद्ध की चुनोतियोँ से अवगत कराया। रानी द्वारा मदद के एक संकेत पर भाटिया ने 5 जून 1818 को राव साहब को गुप्त रूप से राजकीय कोषागार का निरीक्षण कराया तथा उनके सैनिकों को पांच 5 महीने का वेतन दिलवा दिया ।
पैसे मिलने पर रानी लक्ष्मीबाई के सैनिक बड़े उत्साह से परिपूर्ण हुए और उन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ाते हुए पूरे ग्वालियर पर कब्जा कर लिया उसके बाद भी भाटिया ने रानी लक्ष्मीबाई की कई बार मदद की , लेकिन अफसोस रानी की जीत की खुशी ज्यादा दिन नहीं टिक पाई , कुछ ही दिन बाद 16-17 जून को ह्यूरोज और ब्रिगेडियर स्मिथ के नेतृत्व में अंग्रेजों ने करारा हमला किया, रानी लक्ष्मीबाई ने भीषण लड़ाई लड़ी और अनेकों अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा…..
लेकिन अंत में वह वीरांगना वीरगति को प्राप्त हो गई।
अमरचंद बांठिया द्वारा लक्ष्मीबाई की सेना को की गई आर्थिक मदद के कृत्य को अंग्रेजों ने राजद्रोह मान लिया 22 जून को भाटिया को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और यातनाएं दी। एक क्रूर अंग्रेज ब्रिगेडियर नेपियर ने लोगों के बीच दहशत पैदा करने के लिए न केवल भाटिया को उसी दिन सराफा बाजार में नीम के पेड़ पर लटका कर सरेआम फांसी दे दी बल्कि 3 दिन तक भाटिया का शव पेड़ पर लटका रहने दिया वह नीम का पेड़ आज भी है और उसके निकट ही उनकी प्रतिमा स्थापित है । हर साल 22 जून को अमर चंद भाटिया का बलिदान दिवस मनाया जाता है….
शत शत नमन ऐसे महावीर को🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आज की सत्यता:- हमारे देश के लाखों क्रांतिवीरों ने गायों के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, लेकिन दुर्भाग्य इस देश का की आज भी देश में रोजाना हज़ारों गायें काटें जा रही हैं , लेकिन हमारी चेतना इस रूप में मृत हो चुकी है कि हम पर इस बात का रति भर भी प्रभाव नही पड़ रहा और ना ही हम गायों को बचाने के लिए अपने स्तर पर प्रयास कर रहे।
ये सच्चाई है कि हमने भारत के प्राण गोवंश से लाखों मील की दूरी बना ली है…
हम भूल गए हैं कि गाय धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की अचूक सीढ़ी है
।
अब भी समय है, आइये हम सम्भल जाए………
साभार:- अमर उजाला
सम्पादन:- नीरज मेधार्थी, पीएचडी स्कॉलर (पंचगव्य व योग)
केंद्रीय विश्वविद्यालय हरियाणा
संस्थापक वेदामृता संस्था
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